teraa jalwaa nihaayat dil nashiin hai
तेरा जलवा निहायत दिल नशीं है
मुहब्बत लेकिन इस से भी हसीं है
जुनूँ कि कोई मंजिल ही नहीं है
यहाँ हर गाम, गाम-ए-अव्वलीं है
सुना है यूँ भी अक्सर ज़िक्र उनका
कि जैसे कुछ ताल्लुक ही नहीं है
मसीहा बन के जो निकले थे घर से
लहू में तर उन्हीं की अासतीं है
मैं राह-ए-इश्क का तन्हा मुसाफिर
किसे आवाज़ दूँ, कोई नहीं है
'शमीम' उस को कहीं देखा है तुम ने
सुना है वो रग-ए-जाँ के करीं हैं
शमीम जयपुरी
Tuesday, October 9, 2007
तेरा जलवा निहायत दिल नशीं है
Labels: Ghazals, Mushaira, Poets, Shamim Jaipuri, गज़ल, मुशायरा, शमीम जयपुरी, शायर
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