ai maut unhein bhulaaye
ऐ मौत! उन्होने भुलाये ज़माने गुजर गये
आ जा कि ज़हर खाये ज़माने गुजर गये
ओ जाने वाले आ कि तेरे इन्तेज़ार में
रास्ते को घर बनाये ज़माने गुजर गये
गम है ना अब खुशी है ना उम्मीद है ना यास
सब से निजात पाये ज़माने गुजर गये
क्या लायक-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तों
पत्थर भी गर में आये ज़माने गुजर गये
जाने बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं
आ जा कि मुस्कुराये ज़माने गुजर गये
क्या क्या तवक्कुत थी आहों से ए 'खुमार'
ये तीर भी चलाए ज़माने गुजर गये
ख़ुमार बाराबँकवी
Saturday, October 6, 2007
ऐ मौत! उन्होने भुलाये जंमाने गुजर गये
Labels: ख़ुमार बाराबँकवी, गज़ल, मुशायरा, शायर
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