Friday, October 5, 2007

जो था दिल का दौर गया मगर है नज़र में अब भी वो अंजुमन

jo thaa dil ka daur gayaa magar hai nazar meN ab bhi vo anjuman

जो था दिल का दौर गया मगर है नज़र में अब भी वो अंजुमन
वो खयाल-ए-दोस्त चमन चमन, वो जमाल-ए-दोस्त बदन बदन

अभी इब्तिदा-ए-हयात है, अभी दूर मंजिल-ए-इश्क है
अभी मौज-ए-खून है, नफस नफस, अभी ज़िन्दगी है कफन कफन

मेरे हम-नफस गया दौर जब फकत आशियानो कि बात थी
के है अाज बर्क की राअ में, मेरा भी चमन तेरा भी चमन

तेरे बहर-ए-बख्शीश-ओ-लुत्फ जो कभी हुई थी अता मुझे
मेरे दिल में है वही तशन्गी, मेरी रूह में है वही जलन

ना तेरी नज़र में जँचे कभी, गुल-ओ-गुन्चा में जो है दिलकशी
जो तू इत्तेफाक से देख ले कभी, खार में है जो बाँकपन

ये ज़मीं और उसकी वसतें, ना मेरी बनें ना तेरी बनें
मगर इस पे भी ये है ज़िद हमें, ये तेरा वतन वो मेरा वतन

वही मैं हुँ जिसका हर एक शेर एक आरज़ू का मजार है
कभी वो भी दिन थे के जिन दिनों, मेरी हर गज़ल थी दुल्हन दुलहन

ये नहीं के बज्म-ए-तरब में अब कोई नगमा-ज़न हि ना रहा
मैं अकेला इस लिये रह गया के बदल गय़ी है वो अंजुमन

मेरी शायरी है छुपी हूई मेरी ज़िन्दगी के हिजाब में
ये हिजाब उट्ठे तो अजब नहीं परे मुझ पे भी निगाह-ए-वतन

वो अजीब शेर-ए-फ़िराक था के है रूह आलम-ए-वज्द में
वो निगाह-ए-नाज़ जुबाँ जुबाँ, वो सुकूत-ए-नाज़ सुखन सुखन

जगन्नाथ आज़ाद

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