Wednesday, October 24, 2007

किसे देखें कहाँ देखा ना जाये

kise dekhein kahaaN dekha na jaye

किसे देखें कहाँ देखा ना जाये
वो देखा है जहाँ देखा ना जाये

मेरी बरबादियोँ पर रोने वाले
तुझे महव-ए-फुगाँ देखा ना जाये

सफ़र है और गुरबत का सफ़र है
गम-ए-सद-कारवाँ देखा ना जाये

कहीं आग और कहीं लाशों के अंबार
बस ऐ दौर-ए-ज़मीँ देखा ना जाये

दर-ओ-दीवार वीराँ, शमा मद्धम
शब-ओ-गम का सामान देखा ना जाये

पुरानी सुहब्बतें याद आती है
चरागों का धुआ देखा ना जाये

भरी बरसात खाली जा रही है
सराबर-ए-रवाँ देखा ना जाये

कहीं तुम और कहीं हम, क्या गज़ब है
फिराक-ए-जिस्म-ओ-जाँ देखा ना जाये

वही जो हासिल-ए-हस्ती है नासिर
उसी को मेहेरबाान देखा ना जाये

Nasir Kazmi

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