kise dekhein kahaaN dekha na jaye
किसे देखें कहाँ देखा ना जाये
वो देखा है जहाँ देखा ना जाये
मेरी बरबादियोँ पर रोने वाले
तुझे महव-ए-फुगाँ देखा ना जाये
सफ़र है और गुरबत का सफ़र है
गम-ए-सद-कारवाँ देखा ना जाये
कहीं आग और कहीं लाशों के अंबार
बस ऐ दौर-ए-ज़मीँ देखा ना जाये
दर-ओ-दीवार वीराँ, शमा मद्धम
शब-ओ-गम का सामान देखा ना जाये
पुरानी सुहब्बतें याद आती है
चरागों का धुआ देखा ना जाये
भरी बरसात खाली जा रही है
सराबर-ए-रवाँ देखा ना जाये
कहीं तुम और कहीं हम, क्या गज़ब है
फिराक-ए-जिस्म-ओ-जाँ देखा ना जाये
वही जो हासिल-ए-हस्ती है नासिर
उसी को मेहेरबाान देखा ना जाये
Nasir Kazmi
Wednesday, October 24, 2007
किसे देखें कहाँ देखा ना जाये
Labels: Ghazals, Nasir Kazmi, Poets, गज़ल, नासिर काज़मी, शायर
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