mujh ko shikast-e-dil ka mazaa yaad aa gayaa
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मजा याद आ गया
तुम क्यूँ उदास हो गये, क्या याद आ गया
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई के खुदा याद आ गया
बरसे बगैर ही जो घटा गिर के खुल गयी
एक बे-वफा का अहद-ए-वफा याद आ गया
माँगेंगे अब दुआ के उसे भूल जायें हम
लेकिन जो वो बावक्त-ए-दुआ याद आ गया !
हैरत है तुमको देख के मस्जिद में ऐ खुमार
क्या बात हो गयी जो खुदा याद आ गया
खुमार बाराबंकवी
Wednesday, October 31, 2007
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मजा याद आ गया
Labels: Ghazals, Khumar Barabankvi, Mushaira, Poets., खुमार बाराबंकवी, गज़ल, मुशायरा, शायर
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