Sunday, October 28, 2007

लबों पे फूल खिलते हैं किसी के नाम से पहले

laboN pe phool khiltay haiN kisi ke naam se pahle

लबों पे फूल खिलते हैं किसी के नाम से पहले
दिलों के दीप जलते हैं चराग़-ए-शाम से पहले

कभी मंजर बदलने पर भी किस्सा चल नहीं पाता
कहानी ख़तम होती है कभी अंजाम से पेहले

यही तारे तुम्हारी आँख कि चिलमन में रेहते थे
यही सूरज निकलता था तुम्हारे बाम से पहले

हुई है शाम जंगल में परिंदे लौटे होंगे
अब इनको किस तरह रोकें नवाह-ए-दाम से पहले

या सारे रंग मुर्दा थे तुम्हारी शक्ल बनने तक
या सारे हर्फ मुहमल थे तु्म्हारे नाम से पहले

हुआ है वो अगर मुंसिफ तो अजमद इह्तियताँ हम
सज़ा तस्लीम करते हैं किसी इल्जाम से पहले

अमज़द इस्लाम अमज़द

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