chaaNd tanhaa hai aasmaaN tanhaa
चाँद तनहा है आसमां तनहा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तनहा
बुझ गयी आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुँआ तनहा
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जाँ तनहा
हम-सफर कोइ गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा तनहा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तनहा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तनहा
मीना कुमारी
Friday, October 5, 2007
चाँद तनहा है अासमां तनहा
Labels: गज़ल, मीना कुमारी, शायर
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