kisi libaas ki khushboo jab ud ke aati hai
किसी लिबास की खुशबू जब उड़ के आती है
तेरे बदन कि जुदाई बहुत सताती है
तेरा बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है
मेरे बगैर मुझे तुझे नींद कैसे आती है
मिन्नतें है खयाल कि तेरे
खूब गुजरी तेरे ख़याल के साथ
मैने एक ज़िन्दगी बसर कर दी
तेरे ना-दीदा ख़त-ओ-ख़याल के साथ
सारी अक्ल-ओ-होश की अाशायें
तुमने साँचें में जुनून में ढाल दीं
कर लिया था मैने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क
तुमने फिर बाहें गले में डाल दीं
दिल में जिनका निशाँ भी ना रहा
क्यूँ ना चेहरों पे अब वो रंग खिलें
अब तो खाली है रूह जज्बों से
अब भी क्या हम तपाक से ना मिलें
मेरे और उसके दरमियाँ अब तो
सिर्फ एक रूबरू का रिश्ता है
हाये वो रिश्ता, हाये खामोशी
अब फकत गुफ्तगू के रिश्ता है
जौं एलिया
Tuesday, October 9, 2007
किसी लिबास की खुशबू जब उड़ के आती है
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