chhuri jinke haathoN se khaana paRe hai
छुरी जिनके हाथों से खाना पड़े है
गज़ल भी उन्ही को सुनाना पड़े है
तबीयत को काबू में लाना पड़े है
उट्ठे है कहाँ गम, उठाना पड़े है
कुछ आसान नहीं मंसब-ए-सुर्ख-रूई
कई बार मक्तल में जाना पड़े है
(मंसब-ए-सुर्ख-रूई : Position of honour; मक्तल: Gallows)
ना आ दर्दमंदों की महफिल में प्यारे
यहाँ उम्र भर दिल जलाना पड़े है
कलीम अजीज
Sunday, January 20, 2008
छुरी जिनके हाथों से खाना पड़े है
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