pehle tum waqt ke maathe ki lakeeroN se milo
पहले तुम वक्त के माथे की लकीरों से मिलो
जाओ फुटपाथ के बिखरे हुए हीरों से मिलो
इश्रत-ए-हुस्त में मसरूफ तो रहते हो मगर
वक्त मिल जाये तो हम जैसे फकीरों से मिलो
—
फूल हँसा, रोयी शबनम
अपना अपना जज्बा-ए-गम
हुस्त वो है जो आये नज़र
दिल को जियाता, आँख़ को कम
बेकल उत्साही
Wednesday, October 10, 2007
पहले तुम वक्त के माथे की लकीरों से मिलो
Labels: Bekal Utsahi, Ghazals, Mushaira, Poets, गज़ल, बेकल उत्साही, मुशायरा, शायर
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