Tuesday, October 9, 2007

अपने हर हर लफ्ज का खुद आईना हो जाऊंगा

apne har har lafz ka khud aaiinaa ho jaaoongaa

दरीचों तक चले आये तुम्हारे दौर के खतरे
हम अपने घर से बाहर झांकने का हौसला भी खो बैठे



वो अपने वक्त के नशे में खुशियाँ छीन ले तुझसे
मगर जब तुम हँसी बाँटों तो उसको भुल मत जाना



अपने हर हर लफ्ज का खुद आईना हो जाऊंगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसला बन कर खड़ा हो जाऊंगा

मुझ को चलने दो, अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो काफ़िला हो जाऊंगा

सारी दुनिया की नज़र में है मेरा अहद-ए-वफा
एक तेरे कहने से क्या में बेवफा हो जाऊंगा

वसीम बरेलवी

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