apne har har lafz ka khud aaiinaa ho jaaoongaa
दरीचों तक चले आये तुम्हारे दौर के खतरे
हम अपने घर से बाहर झांकने का हौसला भी खो बैठे
—
वो अपने वक्त के नशे में खुशियाँ छीन ले तुझसे
मगर जब तुम हँसी बाँटों तो उसको भुल मत जाना
—
अपने हर हर लफ्ज का खुद आईना हो जाऊंगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसला बन कर खड़ा हो जाऊंगा
मुझ को चलने दो, अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो काफ़िला हो जाऊंगा
सारी दुनिया की नज़र में है मेरा अहद-ए-वफा
एक तेरे कहने से क्या में बेवफा हो जाऊंगा
वसीम बरेलवी
Tuesday, October 9, 2007
अपने हर हर लफ्ज का खुद आईना हो जाऊंगा
Labels: Ghazals, Mushaira, Poets, Waseem Barelvi, गज़ल, मुशायरा, वसीम बरेलवी, शायर
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