tanhaa ishq ke khwaab na bun
तन्हा इश्क के ख़्वाब ना बुन
कभी हमारी बात भी सुन
थोड़ा गम भी उठा प्यारे
फूल चुने हैं खार भी चुन
सुख़ की नींदें सोने वाले
मरहूमी के राग भी सुन
किता
तन्हाई में तेरी याद
जैसे एक सुरीली धुन
जैसे चाँद की ठंडी लौ
जैसे किरणों कि कन मन
जैसे जल-परियों का ताज
जैसे पायल की छन छन
नसीर काज़मी
Tuesday, October 30, 2007
तन्हा इश्क के ख़्वाब ना बुन
Labels: Ghazals, Nasir Kazmi, Poets, गज़ल, नसीर काज़मी, शायर
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