Friday, October 19, 2007

बख़्त से कोई शिकायत है ना अफ्लाक से है

bakht se koi shikayat hai na aflaak se hai

बख़्त से कोई शिकायत है ना अफ्लाक से है
यही क्या कम है के निस्बतत मुझे इस खाक से है

ख़्वाब में भी तुझे भुलूँ तो रवा रख मुझसे
वो रवैया जो हवा का खस-ओ-खशाक से है

बज़्म-ए-अंजुम में कबा खाक की पहनी मैने
और मेरी सारी फजीलत इसी पोशाक से है

इतनी रौशन है तेरी सुबह के दिल कहता है
ये उजाला तो किसी दीदा-ए-नमनाम से है

हाथ तो काट दिये कूज़गरों के हमने
मौके की वही उम्मीद मगर चाक से है

परवीन शाकिर

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