Saturday, November 3, 2007

आबाद रहेंगे वीराने, शादाब राहेंगी जंजीरें

aabaad raheinge weeraane, shadaab raheingi zanjeereiN

आबाद रहेंगे वीराने, शादाब राहेंगी जंजीरें
जब तक दीवाने ज़िन्दा हैं, फुलेंगी फलेंगी जंजीरे

आजादी का दरवाजा भी खुद ही खोलेंगी जंजीरें
टुकड़े टुकड़े हो जायेंगी जब हद से बढ़ेंगी जंजीरें

जब सबके लब सिल जायेंगे, हाथों से कलम छिन जायेंगे
बातिल से लोहा नेने का, ऐलान करेंगी जंजीरें

अंधों बहरों की नगरी में, युँ कौन तवज्जौ करता है
माहौल सुनेगा, देखेगा, जिस वक्त बजेंगी जंजीरें

जो जंजीरों से बाहर हैं, आजाद उन्हें भी मत समझो
जब हाथ कटेंगे जालिम के, उस वक्त कटेंगी जंजीरें

ये तौर भी हैं सय्यादी के, ये ढंग भी हैं जल्लादी के
गर ऐसा ही माहौल रहा, फैलेंगी, बढ़ेंगी जंजीरें

मजबूरों को तरसायेंगी, यूँ और हमें तड़पायेंगी
ज़ुल्फों की याद दिलायेंगी, जब लेहरायेंगी जंजीरें

जंजीरें तो हट जायेंगी, हाँ, निशान रह जायेंगे
मेरा क्या है, जालिम, तुझको बदनाम करेंगी जंजीरें

ले दे के हाफिज़ इन से थीं, उम्मीद-ए-वफा दीवानों को
क्या होगा जब दीवानों से नाता तोड़ेंगी जंजीरें

हफीज़ मेरठी

घर हुआ, गुलशन हुआ, सेहरा हुआ

ghar huaa, gulshan huaa, sehraa huaa

घर हुआ, गुलशन हुआ, सेहरा हुआ
हर जगह मेरा जुनूँ रुसवा हुआ

गैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ
छोड़ आये आशियाँ जलता हुआ

मैं तो पहुँचा, ठोकरें खाता हुआ
मंजिलों पर ख़िज्र चर्चा हुआ

हुस्न का चेहरा भी है, उतरा हुआ
आज अपने गम का अंदाज़ा हुआ

गम से नाजुक, ज़ब्त-ए-गम की बात है
ये भी दरिया है मगर, ठेहरा हुआ

ये इमारत तो इबादत-गाह है
इस जगाह एक मै-कदा था, क्या हुआ

इस तरह राहबर ने लूटा कारवाँ
ऐ फना राहजन को भी सदमा हुआ

रहता है मैखाने के ही आस पास
शेख भी है आदमी पहुँचा हुआ

फना निज़ामी कानपुरी