Saturday, February 2, 2008

अब हक में बहारों के सबा है के नहीं है

ab haq meiN bahaaroN ke sabaa hai ke nahiiN hai

अब हक में बहारों के सबा है के नहीं है
फूलों पे वो पहली सी हवा के नहीं है

खुशबू की शहादत भी बड़ी चीज है लेकिन
??? तेरा नक्श-ए-कफ-ए-पा है के नहीं है

वो परतब-ए-रुख अपना हटा लें तो दिखा दूँ
के इन चाँद सितारों में जिया है के नहीं है

ये सोच के ?? नकीबों को पुकारो
रात अपने चरागों को हवा है के नहीं है

ये कौन खबर लाये के गुलशन में मेरे बाद
वो रस्म-ओ-राहे ?? है के नहीं है

जिस गम के लिये तूने किया, तर्क-ए-ताल्लुक
वो गम तुझे पहले से सिवा है के नहीं है

मैखाना खुले या ना खुले सिर्फ ये देखो
शीशों के खनखने की सदा है के नहीं है

ये तो कोई मंसूर बताये तो बताये
के सुली पे तड़पने में मजा है के नहीं है

आ जाओगे हालत की जद पर जो किसी दिन
हो जायेगा मालूम खुदा है के नहीं है

खामोश हैं लेकिन ये खबर सबको है दनिश
वो दुश्मन-ए-एहबाब-ए-वफा है के नहीं है

एहसान दनिश