ham unheN vo hameN bhulaa baiThe
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनह-गार ज़हर खा बैठे
हाल-ए-गम कह के गम बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे
आँधियों जाओ अब करो आराम
हम खुद अपना दिया बुझा बैठे
जी तो हलका हुआ मगर यारों
रो के लुत्फ-ए-गम गँवा बैठे
बे-शहरों का हौसला ही क्या
घर में घबराये, दर पे आ बैठे
उठ के एक बे-वफा ने दे दी जान
रह गये सारे बा-वफा बैठे
जब से बिछड़े वो, मुस्कुराए ना हम
सबने चेहरा तो लब हिला बैठे
हश्र का दिन अभी है दूर "खुमार"
आप क्यूँ ज़ाहिदों में जा बैठे
खुमार बाराबंकवी
Thursday, October 25, 2007
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
Labels: Ghazals, Khumar Barabankvi, Poets, खुमार बाराबंकवी, गज़ल, शायर
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