rang barsaat ne bhare kuch to
रंग बरसात ने भरे कुछ तो
ज़ख्म दिल के हुए हरे कुछ तो
फुरसत-ए-बेखुदी गनीमत है
गर्दिशें हो गयीं परे कुछ तो
कितने शोरीदा सर थे परवाने
शाम होते ही जल मरे कुछ तो
ऐसा मिलना नहीं तेरा मिलना
दिल मगर जुस्तजू करे कुछ तो
आओ ! नासिर कोई गज़ल छेड़ें
जी बहल जायेगा अरे कुछ तो
नासिर काज़मी
Thursday, October 25, 2007
रंग बरसात ने भरे कुछ तो
Labels: Ghazals, Nasir Kazmi, Poets, गज़ल, नासिर काज़मी, शायर
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