Thursday, October 25, 2007

रंग बरसात ने भरे कुछ तो

rang barsaat ne bhare kuch to

रंग बरसात ने भरे कुछ तो
ज़ख्म दिल के हुए हरे कुछ तो

फुरसत-ए-बेखुदी गनीमत है
गर्दिशें हो गयीं परे कुछ तो

कितने शोरीदा सर थे परवाने
शाम होते ही जल मरे कुछ तो

ऐसा मिलना नहीं तेरा मिलना
दिल मगर जुस्तजू करे कुछ तो

आओ ! नासिर कोई गज़ल छेड़ें
जी बहल जायेगा अरे कुछ तो

नासिर काज़मी

No comments: