Friday, July 18, 2008

सिमटे बैठे हो क्यूं बुजदिलों कि तरह

simTe baithe ho kyuN buzdiloN ki tarah

सिमटे बैठे हो क्यूँ बुजदिलों की तरह
आओ मैदान में गाज़ियों की तरह

कौन रखता हमें मोतियों की तरह
मिल गये खाक में आँसुओं की तरह

नूर-ए-निखत से मामूर यादें तेरी
खुशबुओं की तरह, जगनुओं की तरह

रोशनी कब इतनी मेरे शहर में
जल रहे हैं मकाँ मशगलों की तरह

दाद दीजिये के हम जी रहे हैं वहाँ
हैं मुहाफिज जहाँ कातिलों की तरह

जिन्दगी अब हमारी खता बख्श दे
दोस्त मिलने लगे, महसिनों की तरह

कैसे अल्लाह वाले हैं ये ऐ खुदा
गुफ्तगू, मशवरे साजिशों की तरह

मेरी बातों पे हंसती है दुनिया अभी
मैं सुना जाऊंगा फैसलों की तरह

तुम भी दरबार में हाजिरी दो हाफिज
फिर रहे तो कहाँ मूफलिसों की तरह

हाफिज मेरठी