Friday, July 18, 2008

आइना-ए-खुलूस-ओ-वफा चूर हो गये

aaiinaa-e-khuloos-o-wafaa chuur ho gaye

आईना-ए-खुलूस-ओ-वफा चूर हो गये
जितने चिराग-ए-नूर थे, बेनूर हो गये

मालूम ये हुआ के वो रास्तते का साथ था
मंजिल करीब आयी तो हम दूर आ गये

मंजूर कब थी हमको वतन से ये दुरियाँ
हालात की जफाओं से मजबूर हो गये

कुछ आ गयी हम अहल-ए-वफा में भी तमकनत
कुछ वो भी अपने हुस्न पे मगरूर हो गये

चारागारों की ऐसी इनायत हुई हफीज़
के जो जख़्म भर चले थे वो नासूर हो गये

हफीज़ बनारसी

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