http://aligarians.com/2005/12/phuul-per-jab-kiran-thhar_tharaii/
फूल पर जब किरण थरथराई
वो नशीली नजर याद आई
उनकी आमद का पैगाम सुन कर
भर गया और दर्द-ए-जुदाई
हम कहाँ और बज्म-ए-जानाँ
उनके जलवों ने की रहनुमाई
एक निगाह-ए-करम की बदौलत
बज्म-ए-दिल देर तक जगमगाई
हुस्न था इल्तिफा-ए-मुजस्सम
उमर ही कर गयी बे-वफाई
रात भर खून?? सितारे
तब सुहानी सहर मुस्कुराई
गुल-बा-दामन हैं हंसीं जलवे
वज्द कर ले नजर आजमाई
सिकंदर अली वज्द
Friday, July 18, 2008
फूल पर जब किरन थर-थराई
Labels: गज़ल, शायर, सिकंदर अली वज्द
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment