Friday, July 18, 2008

फूल पर जब किरन थर-थराई

http://aligarians.com/2005/12/phuul-per-jab-kiran-thhar_tharaii/

फूल पर जब किरण थरथराई
वो नशीली नजर याद आई

उनकी आमद का पैगाम सुन कर
भर गया और दर्द-ए-जुदाई

हम कहाँ और बज्म-ए-जानाँ
उनके जलवों ने की रहनुमाई

एक निगाह-ए-करम की बदौलत
बज्म-ए-दिल देर तक जगमगाई

हुस्न था इल्तिफा-ए-मुजस्सम
उमर ही कर गयी बे-वफाई

रात भर खून?? सितारे
तब सुहानी सहर मुस्कुराई

गुल-बा-दामन हैं हंसीं जलवे
वज्द कर ले नजर आजमाई

सिकंदर अली वज्द

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