Saturday, November 3, 2007

घर हुआ, गुलशन हुआ, सेहरा हुआ

ghar huaa, gulshan huaa, sehraa huaa

घर हुआ, गुलशन हुआ, सेहरा हुआ
हर जगह मेरा जुनूँ रुसवा हुआ

गैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ
छोड़ आये आशियाँ जलता हुआ

मैं तो पहुँचा, ठोकरें खाता हुआ
मंजिलों पर ख़िज्र चर्चा हुआ

हुस्न का चेहरा भी है, उतरा हुआ
आज अपने गम का अंदाज़ा हुआ

गम से नाजुक, ज़ब्त-ए-गम की बात है
ये भी दरिया है मगर, ठेहरा हुआ

ये इमारत तो इबादत-गाह है
इस जगाह एक मै-कदा था, क्या हुआ

इस तरह राहबर ने लूटा कारवाँ
ऐ फना राहजन को भी सदमा हुआ

रहता है मैखाने के ही आस पास
शेख भी है आदमी पहुँचा हुआ

फना निज़ामी कानपुरी

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